सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तेलंगाना शिवसेना अध्यक्ष तिरुपति नरसिंह मुरारी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि किसी एक पार्टी को निशाना बनाकर दाखिल याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि सिर्फ सांप्रदायिकता ही नहीं, क्षेत्रीयता भी देश की एकता के लिए खतरनाक है। अदालत ने टिप्पणी की कि कई क्षेत्रीय दल खुलेआम क्षेत्रीयता को बढ़ावा देते हैं और चुनावों में इस आधार पर वोट मांगते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुधार की मांग किसी एक पार्टी के विरुद्ध नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र के लिए होनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने AIMIM पर संविधान विरोधी गतिविधियों और केवल मुस्लिम समुदाय के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक कोई दल संविधान के खिलाफ स्पष्ट रूप से कार्य नहीं कर रहा, तब तक उसकी मान्यता रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता।
अदालत ने कहा कि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन या शिक्षण असंवैधानिक नहीं है और कमजोर वर्गों के हित में काम करना भी संविधान के तहत वैध है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि अगर वे सुधार चाहते हैं, तो ऐसी याचिका दाखिल करें जो सभी दलों की कार्यप्रणाली पर समान रूप से सवाल उठाए।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में व्याप्त जाति, धर्म और क्षेत्र आधारित वोट बैंक की प्रवृत्ति पर गहरी चिंता को दर्शाती है और व्यापक सुधार की दिशा में नीति निर्माण की आवश्यकता पर बल देती है।