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जेलों में कट्टरपंथ के बढ़ते खतरे पर सख्त हुआ गृह मंत्रालय, राज्यों को जारी की गई सख्त एडवाइजरी

:: Editor : Omprakash Najwani :: 08-Jul-2025
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गृह मंत्रालय ने ‘मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016’ और ‘मॉडल प्रिज़न्स एंड करेक्शनल सर्विसेज एक्ट, 2023’ का हवाला देते हुए कहा है कि उच्च-जोखिम कैदियों और उग्रवादियों को अन्य कैदियों से अलग रखने के लिए विशेष सुरक्षा वाले कारागारों की व्यवस्था आवश्यक है। मंत्रालय ने चेताया कि जेलों में बंद कट्टरपंथी बंदी अन्य कैदियों का ब्रेनवॉश कर उन्हें गलत दिशा में मोड़ रहे हैं। यह प्रवृत्ति अब देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह सचिवों को परामर्श जारी करते हुए कहा है कि कारागारों में बंद कमजोर मानसिकता वाले बंदियों में उग्र विचारधारा के प्रसार को रोकना और ऐसे बंदियों को मुख्यधारा में लाने के लिए ‘डि-रेडिकलाइजेशन’ की प्रक्रिया जरूरी है। मंत्रालय का मानना है कि यह कदम सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करेगा।

मंत्रालय ने कहा है कि जेल का सीमित व नियंत्रित वातावरण, सामाजिक अलगाव और समूह मनोवृत्तियों के कारण अतिवादी विचारों के लिए उपजाऊ भूमि बन जाता है। कई बंदी, जो पहले से ही हताशा या समाज से कटाव जैसी स्थितियों में होते हैं, कट्टरपंथी विचारों की चपेट में आ जाते हैं। मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि ऐसे बंदी हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, जैसे जेल स्टाफ पर हमला, अन्य कैदियों को नुकसान पहुँचाना या बाहरी नेटवर्क से मिलकर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को अंजाम देना।

गृह मंत्रालय ने पहले जारी सलाहों को दोहराते हुए राज्यों से अपेक्षा जताई है कि कठोर प्रवृत्ति वाले बंदियों की पहचान, निगरानी और परामर्श की प्रभावी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। ऐसे बंदियों को सामान्य कैदियों से अलग रखने की सिफारिश की गई है। साथ ही राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उच्च सुरक्षा वाले स्वतंत्र प्रिजन कॉम्प्लेक्स स्थापित करने का सुझाव भी दिया गया है, जिससे आतंकवादियों और कट्टरपंथियों को सीमित किया जा सके।

मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ऐसे बंदियों पर निगरानी उपकरणों और खुफिया तंत्र की सहायता से कड़ी निगरानी रखी जाए तथा किसी भी उग्रवादी नेटवर्क की समय रहते पहचान कर उसे समाप्त किया जाए।

मोदी सरकार का मानना है कि बंदियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण, शिक्षा और पुनर्वास कार्यक्रमों से जोड़ा जाए, ताकि उनकी ऊर्जा सकारात्मक दिशा में लगाई जा सके। साथ ही, परिवार से निरंतर संपर्क बनाए रखने की सुविधा उनकी भावनात्मक स्थिरता को बल देगी, जिससे समाज में सफल पुनर्वास संभव हो सकेगा।

बहरहाल, केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम समयानुकूल और आवश्यक है। अब राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे इन दिशा-निर्देशों को गंभीरता से लागू करें और कारागारों को केवल दंड के केंद्र न बनाकर सुधार और पुनर्वास के स्थलों में परिवर्तित करें।


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