
RSS के शताब्दी वर्ष आयोजन से पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की बाहर; बदलती कूटनीति और संवाद की नई रणनीति पर फोकस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है और इस अवसर पर 26 से 28 अगस्त तक दिल्ली के विज्ञान भवन में एक भव्य आयोजन प्रस्तावित है। यह कार्यक्रम न केवल संघ की विचारधारा और उसकी यात्रा पर चिंतन का मंच बनेगा, बल्कि इसकी वर्तमान रणनीति और भविष्य की दिशा पर भी प्रकाश डालेगा। इस आयोजन को लेकर कूटनीतिक संदेशों की चर्चा भी तेज हो गई है क्योंकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की को निमंत्रण नहीं भेजा गया है।
RSS द्वारा इन तीन देशों को निमंत्रण से वंचित करना केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं माना जा रहा, बल्कि इसके पीछे गहरी कूटनीतिक और वैचारिक सोच दिखाई दे रही है। पाकिस्तान को न बुलाने के पीछे ‘वातावरण अनुकूल नहीं है’ का हवाला दिया गया है, जो भारत-पाक संबंधों में लगातार चले आ रहे तनाव को रेखांकित करता है। बांग्लादेश को लेकर वहां अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों की खबरें चिंता का विषय बनी हुई हैं, जिसे विश्व हिंदू परिषद ने बार-बार उठाया है। वहीं तुर्की का बहिष्कार उसके पाकिस्तान के साथ रक्षा संबंध और वैश्विक मंचों पर भारत विरोधी रुख के चलते किया गया है। स्वदेशी जागरण मंच द्वारा तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंधों की मांग इसी दिशा का संकेत है।
हालांकि, इस आयोजन की एक खास बात यह है कि विपक्षी दलों के नेताओं के साथ-साथ मुस्लिम और ईसाई समुदायों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया जा रहा है। यह संघ की उस नई रणनीति की ओर इशारा करता है जिसमें सामाजिक संवाद और आलोचनाओं का जवाब देने की कोशिश की जा रही है। संघ प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर के अनुसार, यह आयोजन संघ की विचारधारा को स्पष्ट करने, आलोचनाओं का उत्तर देने और भारत की औपनिवेशिक संरचनाओं पर पुनर्विचार का अवसर भी होगा।
दिल्ली में उद्घाटन के बाद यह आयोजन बेंगलुरु, कोलकाता और मुंबई जैसे शहरों तक फैलेगा, जिससे यह साफ है कि संघ अब स्थानीय संदर्भों में संवाद और सहभागिता को भी महत्व दे रहा है। अंततः यह आयोजन केवल एक संगठन का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक धारा में RSS की भूमिका पर राष्ट्रीय विमर्श का मंच बनने जा रहा है।
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